हिक्मत और बुद्धि मुस्लिम की खोई हुई विरासत - 04

डॉ. मोहम्मद मंज़ूर आलम

इस्लामी किताबों में कई स्थानों पर, मुस्लिम को हिक्मत और बुद्धि को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. सूरह जुमआ की दूसरी आयत में कहा गया है कि अल्लाह ने तीन जिम्मेदारियों शिक्षा, हिक्मत और तज़किया के साथ रसूल को दुनिया में भेजा। ये बातें अन्य स्थानों पर भी कही गयी हैं, जो इस के महत्व को दर्शाती हैं।

यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है, कि हिक्मत क्या है? अल्लाह की किताब पढ़ने और आत्मा को शुद्ध करने के बाद क्या इस की आवश्यकता है? हिक्मत सिखाने के लिए नबियों का तरीका क्या था और उनके बाद उन के मानने वालों ने इस किस प्रकार अपनाया और इससे उन्हें क्या फ़ायदा हासिल हुआ? जाहिर है ये प्रश्न बहुत विस्तार की मांग करते हैं। उनकी व्याख्या करने के लिए सैकड़ों पृष्ठों की आवश्यकता है।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि ज्ञान, बुद्धि, बुद्धिमत्ता,दूर अंदेशी, समझ, उचित विश्लेषण और उचित नियोजन का संयोजन ही हिक्मत है। ये वो विशेषताएं हैं जिनके द्वारा अल्लाह के दूत (sws) ने 23 वर्षों की छोटी अवधि में मानव इतिहास को बदल दिया और इसी को अपना कर उनके मानने वालों ( सहाबा ए कराम ) और इसलामी इतिहास की महान हस्तियों ने इतिहास रचा दिया।

आज, पहले से कहीं अधिक, हमें हिक्मत को अपनाने की जरूरत है। हमारे सभी कार्यों में हिक्मत हो और हर कदम से हिक्मत ज़ाहिर होना चाहिए। यह हमारी धार्मिक आवश्यकता भी है, सांसारिक आवश्यकता भी है और मानवता की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए हिक्मत को अपनाना बहुत जरूरी है।




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