प्रेरणादायी सलाह – एक मानवीय आवश्यकता- 06

डॉ. मोहम्मद मंज़ूर आलम

दुनिया में हमेशा अच्छाई और बुराई के बीच टकराव रहा है। इस कशमकश में कभी बुराई हावी होती है तो कभी अच्छाई, इस्लाम में अच्छाई को हावी करने के लिए दावत की व्यवस्था है। इस का एक महत्वपूर्ण तत्व सलाह भी है। ऐसी सलाह जो किसी व्यक्ति के दिल को प्रभावित करे और उसे अपनी सोच और कार्यों को बदलने के लिए तैयार करदे। किसी बात के कहने के तरीक़े पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है, इस प्रकार से कहा जाए कि श्रोता या पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। जो बात उसे बताई जाए वो उसके दिल में उतर जाए। उसे महसूस हो कि यह बहुत तार्किक और दिल को लगती हुयी बात है। हम ने तो ऐसा कभी नहीं सुना। ये सोच कर वो व्यक्ति दिल से तैयार हो जाए और इस बात को स्वीकार करले।

इस आकर्षक बात को स्वीकार करना या न करना इंसान की मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक स्थिति पर निर्भर करेगा।ये ज़रूरी नहीं कि जो अच्छा लगे, उसे तुरंत स्वीकार कर लिया जाए। अल्लाह ने हमें यह ज़िम्मेदारी भी नहीं सौंपी है। अच्छे तरीके से अपनी बात पहुंचाने के बाद हमारी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वो इस ने य न माने। हम इस के जि़म्मेदार नहीं।

जब अल्लाह ने मूसा और हारून ( अलैहिस्सलाम ) को ख़ुदाई का दावा करने वाले व्यक्ति के पास भेजा, तो उन्हें कोमल तरीके से बात करने की सलाह दी। अपने को परमेश्वर कहने वाले से भी धीरे से बोलने का आदेश देकर, दावत का सबसे बुनियादी सिद्धांत हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया है। इसलिए हमें इन तका़जो़ं को समझना होगा।

इसके नवीनतम पद्धति को अपनाना होगा। वर्तमान और वर्तमान के अप्रभावी तरीकों को छोड़कर, नए मानव को मानसिकता, सामाजिक स्थिति, सांस्कृतिक संदर्भ और शैक्षणिक स्तर को ध्यान में रखते हुए आकर्षक कार्यप्रणाली ढूंढनी होंगी। फिर इन के अनुसार, इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का पूरा करना होगा।




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