इंसानों के बीच इस्लाम की दावत- 02

डॉ. मोहम्मद मंज़ूर आलम

मनुष्यों के बीच सब से पहला रिश्ता मानवता का है। ये सभी एक माता-पिता की संतान हैं। इसलिए, रंग और नस्ल और धर्म से पहले उनके बीच मौजूद संबंध मानवता का रिश्ता है। अल्लाह और उसके रसूल ने हमें यही शिक्षा दी है। कुरान और हदीस में कहा गया है कि आपको धर्म और राष्ट्र की परवाह किए बिना मानवीय आधार पर एक दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। यह एक सर्वसम्मत इस्लामी सिद्धांत है, जिससे कोई असहमत नहीं

है। इस संदर्भ में, जब हम कुरान का अध्ययन करते हैं तो हमें एक और दिलचस्प बात देखने को मिलती है. अल्लाह काफ़िरों के संदर्भ में कहता है कि अगर हमने क़यामत और मौत का एक समय निर्धारित नहीं किया होता, तो हम उन्हें एक झटके में नष्ट कर देते। इनकी काफि़राना बातों के कारण इन पर अजा़ब नाज़िल कर देते लेकिन जब हमने एक प्रणाली बनाई है और उनकी मृत्यु व क़यामत का समय निर्धारित किया है, इस लिए हम तुरंत उन्हें नहीं मारेंगे, बल्कि उन्हें छूट देंगे। अब वो चाहें तो इस छूट का लाभ उठाते हुए हिदायत हासिल कर लें और चाहें तो तबाही व बर्बादी को अपना मुक़द्दर बना लें । ये बात सूरह शूरा, आयत नंबर

14 और अन्य मुक़ाम पर कही गई हैं। अल्लाह के इस कलाम से इस समय हमें मार्गदर्शन मिलती है। हमें यह सोचना चाहिए कि जब अल्लाह ने हमारे गैर-मुस्लिम भाइयों को एक निश्चित समय की छूट दी है तो उन्हें इस दुनिया में जहन्नमी कह कर इस्लाम की दावत से महरूम करने वाले हम कौन होते हैं? अल्लाह ने उन्हें राहत दी है इसलिए हमें भी अपनी भाषाओं को नियंत्रित करना चाहिए और उनके मार्गदर्शन करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए. इस्लाम की दावत सभी संभावित स्रोतों से देकर उन्हें अल्लाह और उसके रसूल के कानून के पास लाना चाहिए। मुम्किन है कि बड़ी संख्या में मनुष्य अपनी मृत्यु से पहले इस्लाम में आ जाऐं । इस प्रकार इन का मुक़द्दर संवर जाए और हम भी अल्लाह की पकड़ से बच जाऐं.




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