हिक्मत ए दावत : क्या और कैसे ? - 05

डॉ. मोहम्मद मंज़ूर आलम

इससे पहले, हमने इस्लाम के तसव्वुर ए हिक्मत पर कुछ बातें पेश की थीं जो सामान्य हिक्मत के बारे में थीं। अर्थात्, मानव जीवन में हिक्मत कैसी होनी चाहिए। कुरान में हिक्मत शब्द अल्लाह के बंदों को अल्लाह की ओर बुलाने के लिए आया है। सूरह नहल, आयत 125 में कहा गया है: “अपने रब के रास्ते पर बुद्धिमत्ता और अच्छी सलाह के साथ बुलाओ और उनके साथ अच्छे तरीके से वार्ता करो।

प्रश्न उठता है कि ये हिक्मत ए दावत क्या है ? विद्वानों ने इसकी व्याख्या में बड़े विस्तार से चर्चा की है। इसे केवल यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है कि दावत ए हिक्मत उस हिक्मत को कहते हैं जो आमंत्रित व्यक्ति की स्थिति के लिए अधिक उपयुक्त हो। आमंत्रित व्यक्ति या समाज के इतिहास, सभ्यता, रीति-रिवाजों, धार्मिक और सामाजिक पृष्ठभूमि, शैक्षणिक और बौद्धिक स्तर, मनोविज्ञान और मानसिक स्तर को देखते हुए, उसे अपनी बात समझाने के लिए जो तरीका प्रयोग में लाया जाएगा, वही हिक्मत ए दावत कहलाएगा।

भारत की वर्तमान स्थिति हमसे मांग कर रही है कि हम हिक्मत ए दावत को समझने के लिए गंभीरता से तयारी करें। इस तैयारी के लिए आवश्यक शैक्षणिक और बौद्धिक साहित्य तैयार करें। गैर-मुस्लिम विद्वानों के साथ कार्यशालाओं और संवादों की एक श्रृंखला शुरू करें। फिर, उभरने वाले विवरणों के प्रकाश में, एक हिक्मत की नीति विकसित करें। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो कुरान जो हिक्मत अपनाने के लिए दावत दे रहा है, उसे अपनाना बहुत मुश्किल होगा।




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